आखिर मध्य प्रदेश के किसान आक्रोशित क्यों है?

 भोपाल. विगत दिवस भारतीय किसान संघ मध्य भारत प्रांत के द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के प्रशासनिक भवन वल्लभ भवन को किसानों के द्वारा घेरे जाने की योजना क्यों बनी इसके अनेक निहितअर्थ हैं हां यह जरूर स्पष्ट है राजनीति से इसका कोई लेना देना नहीं यह आंदोलन शुद्ध रूप से मध्य प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता पर विराम लगाने के लिए आयोजित किया गया था क्योंकि वर्तमान में सरकार जो भी किसानों की उन्नति के लिए अभियान या योजनाएं चला रही है उनका पालन प्रदेश में जमीनी स्तर पर नहीं हो पा रहा है यह प्र गाट्य सत्य है और इसका प्रमुख कारण प्रशासनिक फेल्योर के रूप में सामने आ रहा है इसी प्रकार प्रदेश में किसानोे की आवश्यकता के महत्वपूर्ण विभाग बिजली एवं राजस्व के साथ ही कृषि विभाग मैं व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण किसानों में भारी असंतोष व्याप्त है इसमें प्रथम पायदान पर है राजस्व विभाग जिससे अमूमन किसानों का प्रतिदिन पाला पड़ता है इस विभाग में पटवारी से लेकर ऊपर के न्यायालय तक भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसकी बांनगी प्रदेश से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में लगभग प्रतिदिन प्रकाशित होती है कहीं लोकायुक्त द्वारा पटवारी रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं कहीं उच्च अधिकारी भी इससे अछूते नहीं है कृषि विभाग में नकली खाद और बीज के साथ ही इस विभाग के अधिकारियों द्वारा व्यापारियों से मिली भगत. 10 घंटे बिजली का आश्वासन देकर मात्र 6 या 7 घंटे बिजली देने झूठे कैस बनाकर किसानों को प्रताड़ित करने और सुविधापूर्ण बिजली सप्लाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भारी नगदी लेनदेन इन सभी कारणो से किसान व्यथित है. और यही कारण है आज सरकार के खिलाफ किसानों को सड़क पर उतरकर उसे चेताने की आवश्यकता आ पड़ी है. भारतीय किसान संघ के प्रांतीय संगठन मंत्री मनीष शर्मा और भारती किसान संघ के प्रांतीय अध्यक्ष सर्वज्ञ दीवान का स्पष्ट कहना है कि वर्तमान आंदोलन सरकार के लिए एक संकेत है जो उसके और किसानों के हित में है सरकार को यह नहीं समझना चाहिए की मात्र उपमुख्यमंत्री के मंच पर आ जाने उनके द्वारा किसानों को आश्वासन देने भर से समस्या हल हो जाएगी ऐसा नहीं है यदि सरकार ने जैसा कि उन्होंने आश्वासन दिया है 15 दिवस के अंदर किसानों के हित में कुछ सकारात्मक संकेत नहीं दिए तो भारतीय किसान संघ दूसरी बार भी सड़क पर उतरने में कोई गुरेज नहीं करेगा और इस बार जो आंदोलन होगा वह आर या पार की परिस्थितियों में ही समाप्त होगा. खेती को लाभ का धंधा बनाने वाली सरकार को यह सोचते हुए और यह मानते हुए उसअन्नदाता किसानों के हक में इन सभी बिंदुओं पर तत्काल कार्रवाई करना ही होगी जो लगभग 365 दिन कृषि कार्य में ही लगा रहता है. यही नहीं प्रकृति की मार तो वह झेलता ही है उसके साथ ही प्रशासनिक आपदा का मुकाबला करना भी उसकी न्यती बन गई है।

शिव मोहन सिंह