भोपाल. यह प्रशासनिक लापरवाही और प्रशासनिक फेलियर के साथ ही इच्छा शक्ति की कमी का स्पष्ट उदाहरण है. वर्तमान में बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी मैं अनेक वाहन कंडम स्थिति में खड़े हुए हैं और इन्हें खड़े हुए बरसों हो गए हैं यदि अति संयुक्ति ना हो तो जिस यह बाहन खड़े हुए थे अथवा किसी कारणवश खड़े किए गए थे उसे समय की कीमत और आज की कीमत में जमीन और आसमान का अंतर आ चुका है आखिर इन वाहनों को इस प्रकार खड़े रखकर विश्वविद्यालय प्रबंधन क्या संदेश देना चाहता है समझ से परे है यही नहीं विश्वविद्यालय प्रबंधन तो बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आता है तो क्या उसको यह समझ में नहीं आता कि इस प्रकार वाहनों को खड़े करने के बाद प्रतिदिन उनकी कीमत में हो रही कमी क्या राष्ट्रीय क्षति नहीं है आखिर विश्वविद्यालय प्रबंधन इन वाहनों को राइट ऑफ करने में क्यों लेट लतीफी कर रहा है यह समझ से परे है और यही नहीं यह प्रदेश में प्रशासनिक गलियारों में छाई हुई तानाशाही का भी उदाहरण है एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष कर रही है समय-समय पर कभी वर्ल्ड बैंक से कभी किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था से बार-बार ऋण लेकर काम चला रही है वहीं इसी सरकार के एक संस्थान द्वारा धन का यह दुरुपयोग क्या सिद्ध करता है. मध्य प्रदेश सरकार को इस विषय में तुरंत कोई नीतिगत निर्णय लेते हुए अकेले इस विश्वविद्यालय ही नहीं मध्य प्रदेश के पुलिस थानों वन विभाग आबकारी विभाग खनिज विभाग आदि में भी जप्त इसी प्रकार के वाहनों के बाबत कोई निर्णय लेना चाहिए और यदि पुराने नियम के कारण कोई दिक्कत है तो शासन को तत्काल विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए राजस्व की इस प्रकार हो रही छती को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए।
शिवमोहन सिंह